स्वागत और प्रारंभिक टिप्पणी
निकोसिया के हवाई अड्डे पर पहुँचने पर साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिड्स ने पीएम मोदी का औपचारिक स्वागत किया। लाल कालीन बिछाकर और गार्ड ऑफ ऑनर के साथ यह स्वागत दोनों देशों के बीच गहरे रिश्ते का प्रतीक था। पीएम मोदी ने इस स्वागत के लिए आभार व्यक्त करते हुए कहा, "मैं साइप्रस पहुँच गया हूँ। मैं साइप्रस के राष्ट्रपति, श्री निकोस क्रिस्टोडौलिड्स को उनकी विशेष पहल और हवाई अड्डे पर मेरे स्वागत के लिए अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। यह यात्रा भारत-साइप्रस संबंधों को विशेष रूप से व्यापार, निवेश और अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण गति प्रदान करेगी।"
Έφθασα στην Κύπρο. Εκφράζω την ευγνωμοσύνη μου στον Πρόεδρο της Κύπρου, Κο. Νίκο Χριστοδουλίδη για την ξεχωριστή χειρονομία και για την υποδοχή μου στο αεροδρόμιο. Αυτή η επίσκεψη θα προσθέσει σημαντικές ώθηση στις σχέσεις Ινδίας-Κύπρου, ειδικά σε τομείς όπως το εμπόριο, τις… pic.twitter.com/Vkc2mwP10a
— Narendra Modi (@narendramodi) June 15, 2025
भारत-साइप्रस संबंधों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत और साइप्रस के बीच संबंध 1962 से चले आ रहे हैं, जब साइप्रस ने 1960 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के दो साल बाद भारत के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित किए। भारत ने साइप्रस की स्वतंत्रता के संघर्ष का समर्थन किया था और उसे एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था। दोनों देश कॉमनवेल्थ ऑफ नेशंस के सदस्य हैं और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक-दूसरे का समर्थन करते रहे हैं।
1980 और 1990 के दशक में दोनों देशों ने अपने संबंधों को कूटनीतिक समर्थन से आगे बढ़ाकर आर्थिक सहयोग की दिशा में विस्तार किया। इस दौरान कई समझौते साइन किए गए, जिनमें 1994 में डबल टैक्सेशन अवॉइडेंस एग्रीमेंट (DTAA) एक महत्वपूर्ण कदम था। इस समझौते ने दोनों देशों के बीच आर्थिक रिश्तों को मजबूत किया और व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया। साइप्रस भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनकर उभरा है, और भारतीय कंपनियाँ साइप्रस को यूरोपीय बाजारों में प्रवेश के लिए एक प्रवेश द्वार के रूप में देखती हैं।
आर्थिक सहयोग और व्यापारिक संभावनाएँ
2015 में भारत और साइप्रस के बीच द्विपक्षीय व्यापार €76.5 मिलियन था, जिसमें और वृद्धि की काफी संभावनाएँ हैं। साइप्रस चैंबर ऑफ कॉमर्स के तहत 2005 में साइप्रस-इंडिया बिजनेस एसोसिएशन (CIBA) की स्थापना की गई थी, जो दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। 2021 में इन्वेस्ट इंडिया और इन्वेस्ट साइप्रस के बीच एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MoU) साइन किया गया, जिसका उद्देश्य निवेश गतिविधियों को प्रोत्साहित करना और व्यापारिक सहयोग को बढ़ावा देना था।
साइप्रस में भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने भी अपनी मौजूदगी बनाई है, जो भारतीय व्यवसायों के लिए निवेश और बैंकिंग सेवाओं को सुविधाजनक बनाते हैं। दूसरी ओर, साइप्रस की कंपनियाँ भारतीय बाजार में अवसर तलाश रही हैं। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश से संबंधित नए समझौतों की उम्मीद है, जो आर्थिक संबंधों को और मजबूत करेंगे।
भू-राजनीतिक महत्व
साइप्रस की भौगोलिक स्थिति और उसकी जटिल भू-राजनीतिक स्थिति इस यात्रा को और महत्वपूर्ण बनाती है। साइप्रस एक विभाजित देश है, जिसका उत्तरी हिस्सा 1974 से तुर्की के कब्जे में है। 1983 में तुर्की समर्थित उत्तरी साइप्रस ने स्वतंत्रता की घोषणा की, लेकिन इसे केवल तुर्की ही मान्यता देता है। तुर्की का पाकिस्तान के साथ गठजोड़ और भारत के खिलाफ उसकी कुछ नीतियाँ, जैसे कश्मीर मुद्दे पर उसका रुख, भारत के लिए चिंता का विषय रहा है।
इस संदर्भ में, भारत का साइप्रस के साथ संबंध मजबूत करना एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है। साइप्रस यूरोपीय संघ का सदस्य है और भारत-ईयू संबंधों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके अलावा, साइप्रस के साथ मजबूत संबंध तुर्की के प्रभाव को संतुलित करने में भी मदद कर सकते हैं, जो क्षेत्रीय और वैश्विक मंचों पर भारत के लिए चुनौती पेश करता है।
सांस्कृतिक और लोगों के बीच संपर्क
भारत और साइप्रस के बीच सांस्कृतिक संबंध भी गहरे हैं। 1980 में दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक सहयोग समझौता हुआ, जिसने सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया। साइप्रस में भारतीय डायस्पोरा की संख्या 2015 तक लगभग 2,700 थी, जो कॉस्मेटिक्स, आईटी और शिपिंग जैसे क्षेत्रों में सक्रिय है। हाल के वर्षों में साइप्रस में भारतीय छात्रों की संख्या में कमी आई है, जिसके पीछे आर्थिक चुनौतियाँ एक कारण हो सकती हैं। इस यात्रा के दौरान शिक्षा और लोगों के बीच संपर्क को बढ़ाने पर भी चर्चा होने की संभावना है।
इतिहास में दोनों देशों के योगदान
साइप्रस ने भारत के प्रति हमेशा समर्थन दिखाया है। 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की साइप्रस यात्रा के दौरान, साइप्रस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की उम्मीदवारी का समर्थन किया था। दूसरी ओर, भारत ने साइप्रस की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन किया है। संयुक्त राष्ट्र शांति सेना (UNFICYP) में तीन भारतीय जनरलों ने कमांडर के रूप में सेवा की है, जिसमें मेजर जनरल कोडंदर सुबय्या थिमय्या भी शामिल हैं, जिनकी 1965 में सेवा के दौरान मृत्यु हो गई थी। उनके सम्मान में साइप्रस के लारनाका में एक सड़क का नाम रखा गया है और 1966 में एक डाक टिकट भी जारी किया गया था।
आने वाले दिनों की उम्मीदें
इस यात्रा से दोनों देशों के बीच सहयोग के नए रास्ते खुलने की उम्मीद है। व्यापार और निवेश के अलावा, शिक्षा, पर्यटन और तकनीकी हस्तांतरण जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ सकता है। साइप्रस की खूबसूरती और भारत के साथ उसकी सांस्कृतिक समानताएँ दोनों देशों के बीच पर्यटन को बढ़ावा देने में मदद कर सकती हैं। साइप्रस में भारतीय समुदाय, जो लगभग 15,000 की संख्या में है, दोनों देशों के बीच एक सेतु का काम करता है।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस यात्रा दोनों देशों के बीच एक नया अध्याय शुरू करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह यात्रा न केवल आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देगी, बल्कि भू-राजनीतिक संतुलन में भी भारत की स्थिति को मजबूत करेगी। दोनों देशों के साझा मूल्य और आपसी हित इस रिश्ते को और गहरा करने का आधार प्रदान करते हैं।