परिचय
22 मई 2025 को कर्नाटक में एक नया विवाद तब शुरू हुआ, जब भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के एक कर्मचारी ने कथित तौर पर कहा, "मैं हिंदी बोलूंगा, कन्नड़ नहीं।" इस बयान ने स्थानीय लोगों और कन्नड़ समर्थकों में आक्रोश पैदा कर दिया, जिसके बाद सोशल मीडिया और समाचारों में यह मुद्दा गूंजने लगा। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस बयान की कड़ी निंदा की और इसे कन्नड़ भाषा और संस्कृति के अपमान के रूप में देखा। यह घटना भारत में भाषाई विविधता से जुड़े संवेदनशील मुद्दों को फिर से उजागर करती है।
घटना का विवरण
खबरों के अनुसार, यह घटना कर्नाटक के एक SBI ब्रांच में हुई, जहाँ एक ग्राहक ने कर्मचारी से कन्नड़ में बात करने का अनुरोध किया। जवाब में कर्मचारी ने कथित तौर पर हिंदी को प्राथमिकता दी और कन्नड़ बोलने से इनकार कर दिया। इस बातचीत का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसके बाद कन्नड़ संगठनों और स्थानीय लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। कुछ लोगों ने इसे कन्नड़ भाषा के प्रति असम्मान माना, जबकि अन्य ने इसे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय भाषाओं के बीच तनाव का प्रतीक बताया।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने तुरंत इस मामले पर प्रतिक्रिया दी और कहा, "कर्नाटक में कन्नड़ हमारी पहचान है। इस तरह का व्यवहार अस्वीकार्य है।" उन्होंने बैंक से इस कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
भाषाई विवाद का इतिहास
भारत में भाषा को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं है। कर्नाटक में पहले भी हिंदी के "थोपे जाने" के खिलाफ आंदोलन हुए हैं, जैसे कि 2017 में बेंगलुरु मेट्रो के हिंदी साइनेज को लेकर विरोध। कन्नड़ भाषा को बढ़ावा देने के लिए कर्नाटक सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जैसे कि सरकारी कार्यालयों और बैंकों में कन्नड़ के उपयोग को अनिवार्य करना। फिर भी, राष्ट्रीय बैंकों और निजी संस्थानों में हिंदी या अंग्रेजी का प्रभुत्व अक्सर स्थानीय भावनाओं को आहत करता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
यह घटना कर्नाटक में क्षेत्रीय अस्मिता को और मजबूत करने का कारण बन सकती है। कन्नड़ भाषा न केवल एक संचार माध्यम है, बल्कि कर्नाटक की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी है। इस तरह की घटनाएँ स्थानीय लोगों में यह भावना पैदा करती हैं कि उनकी भाषा और संस्कृति को पर्याप्त सम्मान नहीं मिल रहा। दूसरी ओर, कुछ लोग इसे अनावश्यक विवाद मानते हैं, क्योंकि हिंदी एक राष्ट्रीय संपर्क भाषा के रूप में व्यापक रूप से स्वीकार की जाती है।
निष्कर्ष
कर्नाटक में यह भाषा विवाद हमें भारत की बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक प्रकृति की जटिलताओं की याद दिलाता है। भाषा केवल संवाद का साधन नहीं, बल्कि पहचान और गर्व का प्रतीक भी है। इस घटना से हमें यह सीख लेने की जरूरत है कि सभी भाषाओं का सम्मान और संतुलन बनाए रखना ही देश की एकता को मजबूत करेगा।